Tuesday, 23 January 2024

दृष्टिपत्र

संयुक्त राष्ट्रसंघ सुरक्षा परिषद 

United Nations Security Council.

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इतिहास साक्षी है कि जब भारत को  UNSC अर्थात् संयुक्त राष्ट्रसंघ सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाए जाने का प्रस्ताव दिया गया था, भारत के राष्ट्र नियन्ताओं ने People's Republic of China  /  चीन के पक्ष में इसे त्याग दिया था। 

इसके बाद साम्यवादी चीन के विस्तारवाद ने तिब्बत का अपहरण कर लिया और फिर उसकी गिद्ध दृष्टि भारत सहित आसपास के उसकी सीमा से सटे दूसरे भी सभी देशों पर थी। चीन द्वारा तिब्बत पर आधिपत्य कर लेने के बाद भारत और चीन के बीच तथाकथित सीमारेखा स्थापित हो गई जिससे पहले भारत की सीमारेखा केवल तिब्बत से ही मिलती थी।

भारत के विभाजन के पश्चात् पाकिस्तान और चीन के बीच साँठ-गाँठ के कारण चीन ने पाकिस्तान से मिलकर भारत को आन्तरिक रूप से भी तोड़ना प्रारंभ कर दिया। सुरक्षा परिषद् में चीन ने अपने विशेषाधिकार "वीटो" का प्रयोग अनेक बार अपने भारत-विरोधी कुत्सित प्रयोजनों को पूर्ण करने के लिए भी किया। सभी यूरोपीय राष्ट्र और संयुक्त राज्य अमेरिका चूँकि भारत-विरोधी ईसाई मत से प्रभावित थे और अप्रत्यक्ष रूप से सनातन वैदिक धर्म तथा मूर्तिपूजा विरोधी थे इसलिए यह केवल संयोग नहीं था कि सुरक्षा परिषद में यहूदी, हिन्दू बौद्ध और इस्लाम का प्रतिनिधित्व करनेवाला भी कोई नहीं था। अमरीका ने अपने ईसाई मत को शक्तिशाली बनाने के लिए बहुत चतुराई से यहूदी राष्ट्र इसरायल का निर्माण किया ताकि मुस्लिम अरब विश्व और यहूदी इसरायल परस्पर संघर्ष करते रहें। धर्म के आधार पर स्थापित हुए विभिन्न राष्ट्रों के सानुपातिक प्रतिनिधित्व को आधार बनाकर सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य के रूप में स्थान दिया जाता तो वह अवश्य ही न्याय की दृष्टि से सुसंगत होता। दुर्भाग्य से भारत इस पूरे कुचक्र का शिकार होकर रह गया। आज जब भारत और धार्मिक, सांस्कृतिक आधार पर सुरक्षा परिषद में भारत और भारत से जुड़े विभिन्न राष्ट्रों जैसे तिब्बत, म्यानमार, वियतनाम, श्रीलंका, (दोनों) कोरिया, (दोनों) वियतनाम, थाइलैंड, लाओस, जापान, मॉरीशस, फिजी और कम्बोडिया आदि सभी देशों का प्रतिनिधित्व करनेवाला कोई नहीं है और केवल चीन, फ्राँस, इंग्लैंड, रूस तथा संयुक्त राज्य अमरीका का ही सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता पर एकाधिकार है तब यह अत्यन्त  आवश्यक है कि धर्म के आधार पर सुरक्षा परिषद की संरचना को फिर से इस प्रकार से सुनिश्चित किया जाए जिसमें संसार के सभी प्रमुख धर्मों के प्रतिनिधि राष्ट्रों को समुचित महत्व प्राप्त हो।

स्पष्ट है कि इस आधार पर ईसाई, यहूदी, मुस्लिम, बौद्ध और हिन्दू धर्म को माननेवाले राष्ट्रों के आधार पर सुरक्षा परिषद की पुनर्रचना की जाए। चीन या उत्तर कोरिया ही तब स्पष्ट रूप से ऐसे राष्ट्र होंगे जिन्हें अपना कोई "धर्म" घोषित करने की बाध्यता होगी। जिस राष्ट्र के पास कोई "धर्म" ही न हो, उसका चरित्र भी क्या होगा? अवश्य ही एक धर्मविरोधी या धर्मनिरपेक्ष वैचारिक और सैद्धांतिक शून्य को भरने के लिए तब तानाशाही, एकाधिकारवादी शक्तियाँ ही सक्रिय हो उठेंगीं।

यह जरूरी है कि संसार की विनाशकारी, विध्वंसकारी और अराजकतावादी शक्तियों का समय रहते उन्मूलन कर दिया जाए।

वैश्विक दृष्टिपत्र - 25 January 2024.

Document of the World Vision -

Released today on the Jan. 25, 2024.

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