Monday, 4 December 2017

कुछ भी! कविता

कुछ भी!
कलर-ब्लाइन्ड !
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सौन्दर्य,
बस एक ही तो रंग है क़ुदरत का,
कभी नज़र आता है,
तो कभी-कभी दिखाई नहीं देता ।
और दूसरे रंग खो चुके हैं अब,
मेरा टॉमी भी यही कहता है,
उसे सब कुछ बस भूरा दिखाई देता है,
मुझको अफ़सोस है उसके लिए,
क्या वह और रंग नहीं देख पाता?
वह बस पहचानता है गंध से बस,
और हँसता है मुझ पर,
जब मुझे अच्छी-बुरी गंध की पहचान नहीं होती!
वह भौंकता रहता है मेरी गर्ल-फ़्रैंड पर,
और मैं उसे रोकता रहता हूँ!
तब वह मुझ पर भी भौंकने लगता है !
मेरी गर्ल-फ़्रैंड यूँ तो ख़ूबसूरत है,
इसलिए यही एक रंग मुझे,
उसमें दिखाई देता है,
और उसकी गंध भी है मादक,
फिर क्यों टॉमी को वह नहीं भाती?
मैं नहीं छोड़ सकता टॉमी को,
मैं नहीं छोड़ सकता गर्ल-फ़्रैंड को,
और दोनों ने मुझे छोड़ दिया है !
पर मुझे फ़र्क़ नहीं पड़ता कोई!
बस एक ही तो रंग है क़ुदरत का!
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और अफ़सोस यह भी,
कि मुझे जीवन और मृत्यु के रंग भी,
अलग-अलग नहीं दिखाई देते!
इसलिए भी शायद,
लोग मुझे पसंद नहीं करते !
क्योंकि मेरी नज़र में,
बस एक ही तो रंग है क़ुदरत का!
हाँ, मैं कलर-ब्लाइन्ड हो चला हूँ !
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