आज की कविता
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मातृ-स्तवन
देह...? नहीं देवी तुम?
देह नहीं, देवी तुम!
वस्त्र...? नहीं देवी तुम?
वस्त्र नहीं, देवी तुम!
रमणी...? नहीं माता तुम?
रमणी नहीं, माता तुम!
लालसा...? नहीं परमेश्वरी?
लालसा नहीं परमेश्वरी!
मोह में बँधो मत,
नेह में बाँधो तुम!
तुम निर्दोष पवित्र प्रकृति,
किन्तु मन मेरा दुष्ट विकृति,
करो कृपा-कटाक्ष-निक्षेप,
हर लो मेरे क्षोभ-विक्षेप।
जानूँ मैं कि मैं देह नहीं,
जानूँ मैं कि नहीं मैं वस्त्र,
और नहीं हूँ मैं पशु-मन,
लेकिन फिर भी हूँ सर्वत्र,
मैं व्यापक प्रकृति मुझमें,
वह व्यापक मैं भी उसमें,
मैं वह नहीं परस्पर भिन्न
हम जीवन, जीवन का उत्स ।
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Ode To Mother Divine!
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मातृ-स्तवन
देह...? नहीं देवी तुम?
देह नहीं, देवी तुम!
वस्त्र...? नहीं देवी तुम?
वस्त्र नहीं, देवी तुम!
रमणी...? नहीं माता तुम?
रमणी नहीं, माता तुम!
लालसा...? नहीं परमेश्वरी?
लालसा नहीं परमेश्वरी!
मोह में बँधो मत,
नेह में बाँधो तुम!
तुम निर्दोष पवित्र प्रकृति,
किन्तु मन मेरा दुष्ट विकृति,
करो कृपा-कटाक्ष-निक्षेप,
हर लो मेरे क्षोभ-विक्षेप।
जानूँ मैं कि मैं देह नहीं,
जानूँ मैं कि नहीं मैं वस्त्र,
और नहीं हूँ मैं पशु-मन,
लेकिन फिर भी हूँ सर्वत्र,
मैं व्यापक प्रकृति मुझमें,
वह व्यापक मैं भी उसमें,
मैं वह नहीं परस्पर भिन्न
हम जीवन, जीवन का उत्स ।
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Ode To Mother Divine!
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Are you the body?
Are You not The Mother?
You are not the body,
You are but The Mother!
Are you the garb?
Are You not The Mother?
You are not the garb,
You are but The Mother!
Are you a woman?
Are You not The Mother?
You are not the woman,
You are but The Mother!
Are you the passion?
Are You not The Mother Supreme?
You are not the passion,
You are but The Mother Divine!
Don’t bind me in the attachment,
Bind me in Your devotion pure!
You Are immaculate nature pure,
My mind is but a vile ghost.
Cast upon me the glance of Grace,
Drive away all my agony and fault.
May I know I am not the body,
May I know I am not the vesture.
And though not the animal-carnal
But Love all-embracing.
I am all-pervasive so nature,
We two are in one-another.
We two are not distinct
We are but the Life succinct.
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