Wednesday, 16 September 2015

श्रीगणेश-जयन्ती / Story -7 / कथा -7,

Story -7  / कथा -7

श्रीगणेश-जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएँ !
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अनादि अजन्मा सती भगवती पार्वती के मन में एक बार प्रश्न उठा :
"मैं कौन?"
और अपने स्वरूप के अनुसंधान में हुई उनकी त्रिगुणात्मिका बुद्धि ने ’नेति-नेति’ के माध्यम से प्रयास करते हुए,
"जो मैं नहीं"… ,
उसका सम्यक् निराकरण करते हुए संपूर्ण असत् को मृदा मानकर एक प्रतिमा निर्मित की । 
उस मृदामयी प्रतिमा में अपने रजोगुण की प्राण-प्रतिष्ठा की और उसे आदेश दिया :
"मैं आत्मानुसंधान में प्रवृत्त हूँ किसी बाह्य विक्षेप को मेरे समीप आने मत देना ।"
"जो आज्ञा ।"
कहकर वह तमो-रजोगुणी प्रतिमा पार्वती की रक्षा के लिए तत्पर होकर द्वार पर पहरा दे रही थी ।
भगवती पार्वती की इस आत्मानुसंधान-रूपी तपस्या से आकर्षित होकर अकस्मात् परमेश्वर भगवान् शिव वहाँ अनायास आ पहुँचे ।
भगवान् शिव के स्वरूप से नितांत अनभिज्ञ उस तमो-रजोगुणी प्रतिमा ने उन्हें भीतर जाने से रोका तो भगवान् शिव ने अपने खड्ग से उसका सिर काट दिया और पार्वती के अन्तःकरण में प्रकाशित हो उठे ।
प्रकृति-रूपी भगवती पार्वती तब उनके लिए अदृश्य हो उठी । तब से वह सभी के लिए अदृश्य ही है ।
पार्वती की सतोगुणी प्रकृति को उस तमो-रजोगुणी मिट्टी की प्रतिमा के वध से क्लेश हुआ और तब पार्वती को क्ली नाम की प्राप्ति हुई ।
भगवती पार्वती का दुःख कैसे दूर करें इस चिन्ता से ग्रस्त भगवान् शिव वन में जब यहाँ वहाँ भटकने लगे तो उन्हें एक गज-शिशु दिखलाई दिया जिसकी माता उसके ही समीप सो रही थी । दोनों परस्पर एक दूसरे की ओर पीठ किए हुए सो रहे थे । तब भगवान् शिव ने उस शिशु को मातृ-प्रेम से रहित जानकर उसका मस्तक काट दिया और उसे लेकर वे वहाँ आये जहाँ उस तमो-रजोगुणी प्रतिमा का कटा शिरविहीन धड पड़ा था । तब भगवान् शिव ने गज-शिशु के उस मस्तक को उस धड पर प्रतिष्ठित कर दिया ।
महेशपुत्र पार्वतीनंदन भगवान् गणेश के जन्म की उस तिथि को तब से श्रीगणेश-जयन्ती के रूप में मनाया जाने लगा ।
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श्रीगणेश-जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएँ !
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