Marigold : अष्टक और चम्पा-शुचिल्
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जब पुर्तगालियों ने अमेरीका (अवमेरुकः) पर आधिपत्य कर लिया तो उन्होंने अष्टक सभ्यता (Aztec Civilization) के चम्पाशुचिल् (कन्दुपुष्प / गेंदाफूल) नामक फूल का नाम बदल कर Marigold (Virgin Mary's Gold) कर दिया, ऐसा @rajiv_pandit का ट्वीट् आज ही मैंने पढ़ा।
श्री राजीव पण्डित Head & Neck Surgeon; अमेरिका में रहते हैं और वहाँ पर @HinduAmerican से संबद्ध हैं।
अब स्थिति यह है, कि यहाँ भारत में हम ब्रिटैनिया और पार्ले के मैरीगोल्ड बिस्किट खाते हैं!!
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इसे पोस्ट किए हुए कुछ समय हो गया है। लगता है अभी तक इस पर किसी ने अपनी कृपादृष्टि / नजरे-इनायत नहीं डाली।
ख़ैर!
सुबह यूँ ही कॉलिन्स जॅम द्वारा प्रकाशित
जर्मन-इंगलिश इंग्लिश-जर्मन डिक्शनरी
के पन्ने पलट रहा था।
'सिविलाइजेशन' के लिए जर्मन भाषा में कौन सा शब्द प्रयुक्त होता है, यह जिज्ञासा मन में उठी और एक बहुत पुरानी समस्या हल हो गई।
जर्मन भाषा में सिविलाइजेशन को ज़िविलाइजेशन लिखा कहा जाता है। यह भी समझ में आया कि यह शब्द स्त्रीलिंगीय है।
तीस वर्षों से भी अधिक पहले से यह तो जानता था कि कैसे ज़ू शब्द संस्कृत शब्द जीव से व्युत्पन्न किया जा सकता है, बॉटनी भी इसी प्रकार से संस्कृत 'भूतानि' का अपभ्रंश हो सकता है, मैन, मानव या मनुष्य का किन्तु सिविल या सिविलाइजेशन का संस्कृत भाषा के किस शब्द से ध्वनिसाम्य और अर्थसाम्य भी हो सकता है इस बारे में कुछ अनुमान नहीं कर पा रहा था।
अब जाकर यह स्पष्ट हो गया कि 'सिविल' का ध्वनिसाम्य और अर्थसाम्य भी संस्कृत भाषा के शब्द 'जीविल्' शब्द में देखा जा सकता है; - जर्मन में इसे 'zivil' लिखा और कहा जाता है।
यद्यपि 'ज्यू' (Jew) शब्द की उत्पत्ति वैदिक संस्कृत शब्द 'यह्वः' से हुई है ऐसा माना जा सकता है और अर्थसाम्य एवं ध्वनिसाम्य की कसौटी पर भी इस संभावना को अस्वीकार नहीं किया जा सकता, किन्तु अब इसकी व्युत्पत्ति 'जीविल्' या 'जीव' से होने पर सन्देह नहीं किया जा सकता।
इसरायल ('अल् इस्र') के वर्णन से भी यही प्रतीत होता है कि जब प्रॉफेट् मूसा इजिप्ट से महाभिनिष्क्रमण (Exodus) कर अपने लोगों के कुल / जनजाति / ट्राइब को लेकर उनके साथ अपने 'ईश्वरीय राज्य' की ओर जा रहे थे, तब उनके सामने की दिशा में कुछ दूर पर उन्हें एक ज्योति-स्तंभ दिखलाई दे रहा था जो कि निरंतर उनका मार्ग-दर्शन कर रहा था। वैदिक पौराणिक सन्दर्भ में इसे ज्योतिर्लिंग ही कहा जाता है और यह भगवान् रुद्र अर्थात् भगवान् "शिव" का ही द्योतक है। इस प्रकार हमें सिविल के समान एक शब्द 'शिविर' और प्राप्त हो जाता है। संस्कृत में एक ओर ऐसा ही शब्द है शिविका / शिबिका (palanquin) यह आकस्मिक नहीं है कि वैदिक पौराणिक काल से ही रुद्र को ऐसी ही एक शिविका में विराजित कर नगर भ्रमण के लिए ले जाया जाता है।
भगवान् शिव से संबद्ध एक उपनिषद् है - बृहज्जाबालोपनिषद्। यह उपनिषद् ऋषि और शैव-सिद्धान्त के प्रवर्तक जाबाल-ऋषि से संबद्ध है। ध्वनिसाम्य और अर्थसाम्य के आधार पर भी यह दृष्टव्य है कि (प्रोफेट्) जिबरील / Gabriel / 'जाबाल ऋषि' का ही सजात / सज्ञात (cognate) हो सकता है।
इसरायल में बीर-शेबा और जाबाल जैसे नामों से भी यही संकेत मिलता है। उल्लेखनीय है कि वीर-शैव मत काश्मीरी शैव दर्शन का ही पर्याय है।
जाबाल-ऋषि क्यों?
क्योंकि जैसा कि अब्राहमिक परंपरा में उल्लेख भी है, जिबरील / Gabriel ही वे एकमात्र इंजील / ऐंजल / Angel / देवदूत? थे जिनका संपर्क अब्राहमिक परंपरा के तीनों प्रॉफेट्स से हुआ था। चूँकि 'Angel' शब्द का ध्वनिसाम्य और संभावित उद्गम आंग्ल-शैक्षम् में देखा जा सकता है, और पुनः आंग्ल-शैक्षम् का ध्वनिसाम्य, अर्थसाम्य भी अंगिरा-शैक्षम् में देखा जा सकता है, इसलिए 'ऐंजल' की व्युत्पत्ति यहीं हो सकती है।
'ऐंजल' का समानार्थी फ़ारसी शब्द है "फ़रिश्तः", और उसका ध्वनिसाम्य और अर्थसाम्य पुनः संस्कृत "पार्षदः" में दृष्टव्य है।
इस संबंध में एक दृष्टि शिव-अथर्वशीर्ष और देवी अथर्वशीर्ष पर डालना प्रासंगिक होगा :
ॐ देवा ह वै स्वर्गं लोकमायँस्ते रुद्रमपृच्छन्को भवानिति। सोऽब्रवीदहमेकः प्रथममास वर्तामि च भविष्यामि च नान्यः कश्चिन्मत्तो व्यतिरिक्त इति। सोऽन्तरादन्तरं प्राविशत् दिशश्चान्तरं प्राविशत् सोऽहं नित्यानित्यो व्यक्ताव्यक्तो ब्रह्माब्रह्माहं प्राञ्चः प्रत्यञ्चोऽहं दक्षिणाञ्च उदञ्चोहं ...
तथा इसी प्रकार का उल्लेख देवी अथर्वशीर्ष में भी पाया जाता है :
ॐ सर्वे वै देवा देवीमुपतस्थुः कासि त्वं महादेवीति।।१।।
साब्रवीत् -- अहं ब्रह्मस्वरूपिणी। मत्तः प्रकृतिपुरुषात्मकं जगत्। शून्यं चाशून्यं च।।२।।
अहमानन्दानानन्दौ। अहंविज्ञानाविज्ञाने। अहं ब्रह्माब्रह्मणी वेदितव्ये।...
इस प्रकार अब्राहम का उल्लेख 'अब्रह्म' शब्द के प्रयोग से उक्त वैदिक मंत्रों में दृष्टव्य है।
यह संपूर्ण विवेचना मेरे पहले लिखे गए पोस्ट्स में भी उपलब्ध है और यहाँ यह वस्तुतः पुनरावृत्ति ही है।
प्रसंगवश इस पर ध्यान गया इसलिए सनद (record) के लिए पुनः लिख रहा हूँ। वैसे सनद शब्द की उत्पत्ति संस्कृत 'सनत्' में देखना भी शायद अनुचित न होगा।
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