Tuesday 16 July 2024

साक्षी वर्तमान है।

इतिहास साक्षी है!

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मैं बहुत असंतुष्ट हूँ। इसलिए नहीं कि मैंने विवाह नहीं किया, बच्चे नहीं पैदा किए। इसलिए भी नहीं कि मैंने अपना 'घर' भी नहीं बनाया। ये चीजें मैंने कभी चाही ही कहाँ थीं! इसलिए भी नहीं कि अपनी युवावस्था में मैं उन तमाम सच्चे-झूठे बाबाओं से मिलता रहा जिसमें अन्त में मैंने व्यर्थ समय गँवाया। बल्कि केवल इसलिए क्योंकि इस दौरान कई ऐसे लोगों से पाला पड़ा, गलतफहमी से जिन्हें मैंने अपना मित्र बना लिया। आधे अधूरे बाबाओं में से अनेक तो दिवंगत हो चुके हैं और मेरे पुराने मित्रों में से भी बहुत से जा चुके हैं। बस लेकिन उन मित्रों के बारे में जरूर लगता है जिन्होंने माया - जैसे कार, आलीशान मकान और गृहस्थों से अध्यात्म या धर्म के बहाने संपत्ति भी पा ली होगी लेकिन अब जीवन लगभग घसीटते हुए खींच रहे हैं। जीवन में उदासी घर कर गई है न भोजन का सुख है, न स्वास्थ्य और उमंग है। चेहरा क्लान्त और निस्तेज है, यद्यपि कभी कभी मिलने के लिए आनेवालों से मिलते समय और वैसे भी प्रायः Men's Parlour  से शरीर और चेहरे को टोन अप करवाते रहते हैं। कई असाध्य रोगों से त्रस्त हैं और अच्छी तरह जानते है कि किसी भी समय  अप्रत्याशित रूप से यहाँ से चले जाना है। मृत्यु के बाद क्या होता होगा, इससे भी अधिक चिन्ता और निराशा उन्हें जीते जी इसलिए भी है क्योंकि शरीर जर्जर, दुर्बल और रुग्ण है। लोग भी जानते हैं लेकिन क्या कर सकते हैं? तो मैं क्यों असन्तुष्ट हूँ? 

क्योंकि मैं जानता हूँ कि उनके इर्द-गिर्द जमा होनेवाले लोग उनके हितैषी हरगिज़ नहीं हैं। वे अपने आप तक के हितैषी नहीं हैं। वर्षों से साथ रहते हुए बस एक आदत भर हो गई है, रोज रोज मिलते रहने की।

सब के सब उनसे इसलिए मिलते रहते हैं क्योंकि उन सब के जीवन में एक रिक्तता, एक अभावात्मकता भरी हुई है। और इस अभावात्मकता और रिक्तता को भरने के लिए ही उनके पास आया करते हैं। दो या दो से अधिक शून्य परस्पर मिलकर क्या किसी के जीवन में भराव ला सकते हैं? हर कोई अपने खालीपन को भरने के लिए मनोरंजन का सहारा लेता है मनोरंजन हमें मूढ बना देता है। मनोरंजन तो एक विष ही है। तथाकथित सत्संग लोग इसीलिए करते हैं ताकि अपनी काल्पनिक लालसाओं को पूर्ण कर सकें। इसे हम आध्यात्मिक उन्नति कहते हैं। क्या आप नहीं देखते कि बाबा लोग कैसे बड़ी से बड़ी भीड़ अध्यात्म और धर्म के नाम पर आकर्षित करते हैं जबकि उन्हें भी पता नहीं होता कि इस सबसे कुछ होना जाना नहीं है बल्कि होता यह है कि सभी एक दूसरे से ऊर्जा खींचते और उसे व्यर्थ करते रहते हैं। इसीलिए मैं असंतुष्ट हूँ। और यह न सोचिए कि हम सब उनसे कुछ अलग हैं।  हम सभी एक दूसरे को निरन्तर और भी अधिक विनष्ट और भ्रष्ट करते जा रहे हैं। यह सब समझने के लिए बुद्धि सूक्ष्म, और प्रखर होना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि विवेकयुक्त होना उससे भी कहीं अधिक आवश्यक है। लोभ और भय अज्ञान के ही लक्षण और परिणाम हैं, दोनों ही प्रमाद में ही उत्पन्न, विकसित होते हैं। प्रमाद ही एकमात्र पाप है और विवेक ही एकमात्र पुण्य है। जब तक हम प्रमाद से ग्रस्त हैं, किसी भी प्रकार के काल्पनिक  लोभ और भय से ग्रस्त हैं तब तक हमारे लिए कोई भविष्य, कहीं नहीं है। मेरे घर के आसपास हर घर के बाहर वाहनों और क्रोध की कारें लगी हैं। लोग बड़ी शान से उनका प्रयोग करते हैं। घरों के बाहर सीमा से परे फुटपाथ का अतिक्रमण कर लेते हैं, उन पर भी वृक्ष लगाकर सड़क और भी संकीर्ण कर देते हैं, क्योंकि कार रखने के लिए घर में गैराज नहीं है। लाखों रुपयों के मूल्य की कारों का स्वामित्व होने उन्हें और अधिक विलासप्रिय, आलसी बनाता  है। फिर वे जिम जाते हैं, घर में भी इस प्रकार के उपकरण रखते हैं जिस पर वे व्यायाम कर सकें। 

मैं उनसे और हर किसी से कहना चाहता हूँ, हम सभी अपनी आदतें बदलें, अच्छा और स्वास्थ्यप्रद संतुलित भोजन समय पर करें, नियमित रूप से व्यायाम करें, कृत्रिम उपायों से प्राप्त होनेवाली सुख सुविधाओं, समस्त भौतिक यन्त्रों को प्रयोग करना पूरी तरह से छोड़ दें, लोगों से मिलना जुलना कम से कम और आवश्यक होने पर ही करें। प्रकृति से प्राप्त स्वाभाविक जीवन-क्रम जीवन में अपनाए। सरलता से जियें और शास्त्रचर्चा, प्रवचन या उपदेश आदि लेने देने से परहेज करें। लेकिन मेरी इन बातों पर कोई कभी ध्यान तक नहीं देता। इसलिए मैं दुःखी तो नहीं किन्तु असन्तुष्ट भर अवश्य हूँ। 

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